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Thursday, August 4, 2011

एकाग्रता और ध्यान

  एकाग्रता और ध्यान

क्रियात्मक ध्यान पूरी तरह जीवन मे लाना आवश्यक है .
यदि चाहत ज्यादा है तो सीखना होगा ज्यादा .
खुद को सिखाओ बार बार.
नियमित अभ्यास करना एक प्रकार का अनुशाशन है.
अभ्यास मीठा हो, खट्टा अभ्यास न हो.
मीठे से मतलब है कि आनंद से भरा,एकाग्रता से किया गया क्रियात्मक  वास्तविक अभ्यास हो .
यह मान के चलो कि 'मै इमानदार हूँ , मेरा योग्य मस्तिष्क है, मै औरों के कार्यकलाप पर ध्यान न दे कर,स्वयं पर स्थिर करना चाहता हूँ.'
एकाग्रता पहली सीढ़ी है आध्यात्मिक पथ की.
प्रतिस्पर्धा करो औरों से नहीं स्वयं से.
आलोचना करो स्वयं की - कि क्या कर रहे हो, क्या नहीं कर रहे हो.
हर नियम समझ न आये या शायद हर नियम समझने के योग्य हम न हों.
मगर लगातार सीखना जारी हो, एक चाहत हो.
समझ खुद बखुद आगे बढ़ेगी.
आध्यात्मिक पथ पर आगे जाने का विश्वास बढेगा.
केवल अभ्यास हर दिन किया जाने वाला काम न रह के एक अपूर्व आनंद मैं बदल जाए.
   

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